Saturday, August 18, 2007

तुम

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व्यस्त जीवन के कुछेक बेचैन पलों में जब
तुम्हारी यादों की क़सक होती है
जड़-चेतन हर तत्व में हर ओर
सिर्फ़ तुम्हारी झलक होती है

इन अनवरत बारिशों में
तुम्हारे नटखटपन की मिलावट है
इन विस्तृत घाटियों के खालीपन में
तुम्हारी उत्कटता की आहट है

इन घुमावदार सड़कों के उस पार अब भी
तुम्हारी परछाईयाँ अठखेली करती हैं
उन पर्वतों में डूबती-उतराती घटाएं
यादों की आँख मिचौली करती हैं

रात्रि के तीसरे पहर वाले सन्नाटे में
तुम्हारी मोहक-अविरल बातें गूँजती हैं
रौशनी के नीचे असँख्य कीट-पतँगों की भन्नाहट में
तुम्हारी उच्छृन्खलता खलती है

माना आज तुम साथ न सही
पर इक सुखद अनुभूति तो है
वो चंचल मुस्कान आस-पास न सही
भरोसा उन यादों के प्रति तो है

जीवन से कुछ प्राप्त हुआ हो न हो
पर स्वयं पर इतना अभिमान तो है
तुम्हारी चेतना में क्षण भर को ही सही
आज भी आता मेरा नाम तो है!




1 comment:

Abhishek said...

Another beautiful creation.... the pain does bring out the best in us it appears....