Friday, June 01, 2007

काश


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काश मेरे पास बस थोड़ा कुछ होता...
एक कतरा आसमान का विस्तार
एक दोने भर नदी का बलखाना
एक थैली सागर की उठती लहर
एक मुठ्ठी पुरवईया का झोंका
एक साँस भर भीगी काली घटा
एक नज़र भर इँद्रधनुष का रँग
काश!

मैं ज़्यादा कुछ की लालसा नहीं रखता...
बस एक नग सरसराती पत्ती उस झाड़ की
एक दामन इठलाहट पेड़ की डाल की
एक चुटकी भर महक पहली बारिश से नम मिट्टी की
एक छुअन चुलबुली मचलती उस गिलहरी की
एक चुल्लू खुशबू बाग़ के सारे फूलों की
एक हथेली पसीना माली की मेहनत का
काश!

मैंने सीमित कर डाले हैं अपने ख़्वाब, चाहिये अगर...
तो बस एक हिस्सा ऊँचे पर्वत की हिम्मत का
एक चमकीली किरण ढलते सूरज की
एक आईना तालाब में बनती चाँद की परछाई
एक मीठी सिहरन रात को समन्दर किनारे की ठण्डी रेत की
एक चेतना ऊँचाई से गिरती झरने की इक बूँद की
एक थोड़ा बंजारापन उस रेगिस्तान का
काश!

मैंने अपने लिये तो कभी कुछ चाहा ही नहीं...
बस एक मुठ्ठी विवेक से भरा मस्तिष्क
एक झोली मिठास से भरी वाणी
एक पर्वत भर ऊँचा विश्वास
एक चींटी भर जितना धैर्य
एक सागर भर गहरे प्रेम से भरा हृदय
और एक सम्पूर्ण "आत्मा" से भरा शरीर
काश!

काश मेरे पास बस थोड़ा कुछ होता...