साक़ी की हर निगाह पे बलखा के पी गया
लहरों से खेलता हुआ लहरा के पी गया
रहमत-ए-तमाम मेरी हर ख़ता मुआफ़
मैं इन्तहाँ-ए-शौक़ से घबरा के पी गया
पीता बग़ैर इज़्न ये कब थी मेरी मज़ाल
दर पर्दा चश्म-ए-यार की शह पा के पी गया
समझाने वाले सब मुझे समझा के रह गए
लेकिन मैं एक-एक को समझा के पी गया
पास रहता है दूर रहता है, कोइ दिल में ज़ुरूर रहता है
जब से देखा है उनकी आँखों को, हल्का हल्का सुरूर रहता है
ऐसे रहते हैं वो मेरे दिल में, जैसे ज़ुल्मत में नूर रहता है
अब आदम का ये हाल हर वक़्त, मस्त रहता है चूर रहता है
ये जो हल्का हल्का सुरूर है...