Friday, August 10, 2007

आओ मिल कर बैठें

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कई वर्षों की ख्वाहिश है
तमाम ज़िन्दगी यूँ ही बिताने की
कुछ गिले-शिकवे मिटाने की
कुछ पुरानी यादें सजाने की

वो रंगीन किस्से, वो छोटी मुलाकातें
उन जामों का हल्का सुरूर, वो दिल की बातें
वो परिंदों सी आज़ादी, वो सुकूनी रातें
फिर साथ आने की, वो बाज़ियाँ बिछाने की

कुछ पुराने साथी, कुछ पुराने मंज़र
कुछ दिलफेंक नज़ारे, कुछ हसीन खंजर
कई आड़ी तिरछी राहें, कई अजीब सफ़र
हमाम में एक बार फिर, वही नज़्में गुनगुनाने की

कोशिश तुम्हारे ग़मों को फिर अपनाने की
एक ही थाली में फिर हर रोज़ खाने की
तुम्हारे दिल का वो कोना वापस पाने की
ख्वाहिश है, एक बार फिर दिल-से मुस्कुराने की

Inspired by Chandra's post.



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