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कई वर्षों पुरानी ये छोटी सी कथा
एक छोटे बालक की बड़ी मनोव्यथा
जब पहली बार हृदय हुआ लाचार
लगा उसे, बस यही है "पहला प्यार"
बालक ही था, क्या जाने प्रेम की परिभाषा
हर दिन डूबता-उतराता, कभी आशा, कभी निराशा
तेरह वर्ष की उम्र में ही, जीवन लगने लगा इक स्वप्न
कारणों से अनभिज्ञ, बस बेचैन सा रहता मन
हाँ, माना वो भी कुछ कम न थी
इक कली, तब तलक किसी की हमदम न थी
उस प्यारी सी बच्ची का, ऐसा गज़ब का आकर्षण
बालक बेचारा, थम सा जाता हर क्षण
मूर्ख, अज्ञानी, सच से अनभिज्ञ, पूरा नादान
अरे प्रेम को समझ न पाए ज्ञानी-महान
अगर तेरह वर्षीय बालक को सचमुच प्रेम हो जाए
तब तो मानव-शुचिता पर ही प्रश्न लग जाए
प्रेम है वो अग्नि, वो शक्ति महान
जिसमें हृदय खोता नहीं, पाता है पहचान
बेसुध मन हो, फिर भी इक विचित्र अनुभूति
प्रेम ही धरा, प्रेम मानव, प्रेम स्वयँ प्रकृति
ख़ैर, दर्शनशास्त्र वाचन नहीं इस कविता का उद्देश्य
वापस चलें उस बालक के हृदय-प्रदेश
बालक था परेशान, विकट समस्या, न कोई निदान
कैसे हो भावनाओं की अभिव्यक्ति, मिले कोई समाधान
दो वर्ष बीते, तथाकथित प्रेम में आई थोड़ी तीव्रता
पर वही पुरानी कथा, दोनों की थी "बस
मित्रता"!
बस कुछ दिन और, विद्यालय का होने आया समय समाप्त
बालक को लगता, हर दिन मानो हृदयाघात
बालक के कुछ अन्य मित्र, भाँप गए उसकी परिस्थिति
जो उससे हो न सकी, मित्रों ने कर डाली वो कृति
वो समझ न पाई ये सब, उम्र में थी वो भी नादान
तोड़ डाले हर बंधन, नष्ट की मित्रता की हर पहचान
जीवन में पहली बार, लगा हृदय पर घोर आघात
प्रेम नहीं, सिर्फ़ आकर्षण ने, छीना एक मित्र का साथ
स्वप्न तो भहराए, पर साथ हुआ एक अपराध-बोध
अपराध? अर्थात् न था प्रेम वह, साबित होता बिना शोध!
प्रेम नहीं, पुनः मित्रता पाने को, जुटाकर साधन सकल
बालक ने किया अथक प्रयास, रहा सर्वथा विफल
समय चक्र न रुका है कभी, बीते ऐसे ही वर्ष दस
बालक रमा अलग जीवन में, तुच्छ मानवों की यही बिसात बस!
अन्दर कहीं न कहीं परन्तु, व्याकुल हृदय था कचोटता
तेईस वर्षों का हुआ बालक, पर अब भी याद आती वह मित्रता
आज भी उसके वही सिद्धांत, रिश्तों को समझना पूँजी प्रधान
रहा न गया, दस वर्षों पर्यन्त, कर दिया दूरभाष हृदय थाम!
थोड़ी बहुत बातें, यूँ ही हालचाल, जैसे मिले हों अजनबी
समझना न सही, पर भूल न सकी इतने दिनों बाद भी?
मैंने ऐसा क्या किया गुनाह, बालक ही तो था नादान
दस वर्षों बाद ही सही, मित्रता का थोड़ा तो करते सम्मान!
हूँ अज्ञानी पर सुन लो, कहता हूँ इक अनमोल वचन
कल न तुम रहोगी, न मैं, बस इतने से सच को कहते जीवन
अगर कभी कम हो मलाल, लगे ज़रूरत किसी अपने की
बेहिचक याद करना, राह देखूँगा मित्र तुम्हारे लौटने की...