
कल स्वप्न में तुम्हें देखा था
पानी पर फिसलते शिकारे में तुम्हारी मादकता का एहसास था
झील की सतह सहलाते तुम्हारे बालों से भँवर सा आभास था
तुम्हारे चेहरे पर तितली की टिप्पियों सा मधुर हास था
तुम्हारी आँखों की गहराईयों में परावर्तित सारा आकाश था
कल स्वप्न में तुम्हें देखा था
पानी में भिगोई तुम्हारी उँगलियों में भीनी सी छुअन थी
किनारे की डालियों में तुम्हारे चेहरे को छू जाने की तड़पन थी
तुम्हारी हथेली पर आने को कमल की पत्ती पर की ओस व्याकुल थी
बादलों के बीच से तुम्हारी झलक पाने को सूरज की किरण आकुल थी
कल स्वप्न में तुम्हें देखा था
तुम्हें स्पर्श करती उस पार से आती बयार मेरी ईर्ष्या बढ़ाती थी
पानी से छलकी दो बूँदें तुम्हारे होठों पर बैठ मुझे चिढ़ाती थीं
तुम्हारी उँगलियों से खेलती धार मेरी निर्बलता का एहसास दिलाती थी
तुम्हारे बालों से उलझती कुछ शैवालें मेरा परिहास उड़ाती थीं
कल स्वप्न में तुम्हें देखा था
हृदय के दूरस्थ कोने में छुपे उद्गारों को हवा देता स्वप्न
एकांत जीवन की निरर्थकता जताकर मुझे झकझोरता स्वप्न
खुली आँखों में तुम्हारी मृगतृष्णा समान मँडराता स्वप्न
असत्य, व्यर्थ, मूर्खतापूर्ण, क्रूर "प्यारा" सा स्वप्न...
पानी पर फिसलते शिकारे में तुम्हारी मादकता का एहसास था
झील की सतह सहलाते तुम्हारे बालों से भँवर सा आभास था
तुम्हारे चेहरे पर तितली की टिप्पियों सा मधुर हास था
तुम्हारी आँखों की गहराईयों में परावर्तित सारा आकाश था
कल स्वप्न में तुम्हें देखा था
पानी में भिगोई तुम्हारी उँगलियों में भीनी सी छुअन थी
किनारे की डालियों में तुम्हारे चेहरे को छू जाने की तड़पन थी
तुम्हारी हथेली पर आने को कमल की पत्ती पर की ओस व्याकुल थी
बादलों के बीच से तुम्हारी झलक पाने को सूरज की किरण आकुल थी
कल स्वप्न में तुम्हें देखा था
तुम्हें स्पर्श करती उस पार से आती बयार मेरी ईर्ष्या बढ़ाती थी
पानी से छलकी दो बूँदें तुम्हारे होठों पर बैठ मुझे चिढ़ाती थीं
तुम्हारी उँगलियों से खेलती धार मेरी निर्बलता का एहसास दिलाती थी
तुम्हारे बालों से उलझती कुछ शैवालें मेरा परिहास उड़ाती थीं
कल स्वप्न में तुम्हें देखा था
हृदय के दूरस्थ कोने में छुपे उद्गारों को हवा देता स्वप्न
एकांत जीवन की निरर्थकता जताकर मुझे झकझोरता स्वप्न
खुली आँखों में तुम्हारी मृगतृष्णा समान मँडराता स्वप्न
असत्य, व्यर्थ, मूर्खतापूर्ण, क्रूर "प्यारा" सा स्वप्न...